श्री गीता योग प्रकाश

स्व. श्री बिजय शंकर पाण्डेय द्वारा रचित

गीता का पदानुवाद


श्री जी डी पाण्डेय द्वारा संकलित

प्रस्तुतकर्ता

पुनम पाण्डेय

INTRODUCTION OF GEETA (गीता - एक परिचय)



The Bhagavad Gita (/ˌbʌɡəvəd ˈɡiːtɑː, -tə/; Sanskrit: भगवद्गीता, IAST: bhagavad-gītā, lit. "The Song of God"), often referred to as the Gita, is a 700-verse Sanskrit scripture that is part of the Hindu epic Mahabharata (chapters 23–40 of Bhishma Parva).

The Gita is set in a narrative framework of a dialogue between Pandava prince Arjuna and his guide and charioteer Krishna. At the start of the Dharma Yudhha (righteous war) between Pandavas and Kauravas, Arjuna is filled with moral dilemma and despair about the violence and death the war will cause. He wonders if he should renounce and seeks Krishna's counsel, whose answers and discourse constitute the Bhagadvad Gita. Krishna counsels Arjuna to "fulfill his Kshatriya (warrior) duty to uphold the Dharma" through "selfless action". The Krishna–Arjuna dialogue cover a broad range of spiritual topics, touching upon ethical dilemmas and philosophical issues that go far beyond the war Arjuna faces.

SREE GEETA YOG PRAKASH श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 1

 श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 1

SREE GEETA YOG PRAKASH 


गीता

प्रथम अध्याय  

     अर्जुन विषाद योग
बहुत दिनो की बात हुई यह बात है अमर कहानी ।
पांच हजार बरस बीते है, फिर भी नहीं पुरानी ।।
लिया जन्म भगवान कृष्ण ने , धन्य हुई यह धरनी ।
युद्ध किया कौरव पाण्डव ने , कथा विषय यह वरनी ।। 1

युद्ध भूमी में , पाण्डव दल में, अर्जुन के कोचवान ।
सारथि र्धम निभाया प्रभु  ने, धन्य धन्य भगवान ।।
दुर्योधन थे कौरव दल में,  महाबली गुणवान ।
वृद्ध पिता धृतराष्ट्र थे उनके, स्वामी सहज सुजान ।।  2

नहीं जा सके युद्ध भूमी में, नयन बिना लाचार ।
समाचार संजय से सुनते, और युद्ध संचार ।।
युद्ध हुआ होने के तत्पर, अर्जुन करे विचार ।
उभय पक्ष के बीच खडे़ हो, प्रभु से किया गोहार।। 3

देखूॅ तो है, कौन कौन परिचित भाई गुरु चाचा ।
कैसा युद्ध बना है अपना ,जस संजस ने बॅांचा।।
जब भगवान ने किया खड़ा रथ, बीच सैन्य दल लाकर ।।
बहुत विषाद हुआ अर्जुन को, अपने ही जन पाकर ।। 4

ममताग्रस्त दयार्द्र हुए, अर्जुन को, शोक महान ।
तब जो कुछ कहा प्रभु ने ,वह गीता का ज्ञान ।।
यह तो रहा विषाद योग, अर्जुन का प्रथम पुनीत ।
कृष्णार्जुन संवाद रुप में , है गीता का गीत ।।  5

हुआ समाप्त प्रथम अध्याय  ।
प्रभुवर हरदम रहे सहाय ।।

गुरुवर हरदम रहे सहाय ।।।

SREE GEETA YOG PRAKASH श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 2

श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 2

SREE GEETA YOG PRAKASH 

अध्याय - 2 

सांख्य योग


युद्ध क्षेत्र में खडे़ हुये हो, यह तो समय विषम है ।

मोह कहॉं से आया अर्जुन, अपयशदायक मन है ।।

पण्डित ज्ञानी सम तव वाणी, मोह मन में लाओ ।

यह न शोका का समय ,करो कर्त्तव्य, वहीं बस ध्यावो।। 6


सब थे पहले ,फिर भी होंगे ,चलता चक पुराना ।

जो भी जन्म लिया मरता है ,नया ही बने पुराना ।।

इस तन में है आत्मा , अमर और अविनाशी।

बसन बदलना होता रहता , क्या मगहर क्या काशी ।। 7


जो है निश्चित , शोक न करना, सत्य सदा अविनाशी ।

धर्म युद्ध में युद्ध करो हे ,कीर्ति मिले अविनाशी ।।

मृत्यु -मिलन का शोक न करना , स्वर्ग मिलेगा तत्क्षण ।

कष्ट अगर इन्द्रिन को होगा , सहते जाना हर क्षण ।। 8


दुःख सुख में मन को सम रखना , हे मेरे वरवीर ।

ये तो नित्य नही रहते है, मत आतुर हो धीर ।।

समता में रहने वाले को ,कभी न लगता पाप ।

सांख्य योग प्रारम्भ हुआ तो , नाश न हो परताप ।। 9


इसका पालन निशदिन करना, कर्म का बन्धन काटे ।

निर्भय सदा बना रहता है, सत्य के हाटे बाटे ।।

कर्म नहीं कोई बल रखता, इस समता के आगे ।।

निश्चल मन जब हो समाधि में , स्थितप्रज्ञता जागे ।। 10


स्थितप्रज्ञ के क्या लक्षण है ,हे प्रभुवर बतलाये।

काम-रहित,निज आत्म पथिक, अति तुष्ट प्रभु बतलाये ।।

जो सुख दुःख में समचित रहता , मन विकार नहिं जागे ।

जो परहित में आगे रहता, अरु प्रपन्च से भागे ।। 11


आसक्ति हो विषय के चिन्तन , आसक्ति से काम ।

काम क्रोध की जननी बनता , मूर्खता परिणाम ।।

मूढ़ बने तो चेत भी भागे , ज्ञान का होवे नाश।

मृतक समान बने नर उस क्षण, ज्ञान का हो जब नाश ।। 12


ज्ञान नहीं तो भक्ति भी भागे , भागे तुरत विवके ।

भक्ति बिना नहिं शांति मिले , यह परम सलोना टेक ।।

शांति बिना सुख सपनेहु दुष्तर, बोले सन्त अनेक ।

योगी जागे , जब जग सोवे , यही एक पथ नेक ।। 13


ब्राह्मी-दशा प्राप्त नर ऐसा , परम शांति को पाता ।

पाकर परम प्रभु पथ पावन ,मोह मार्ग नहिं जाता ।।

अन्त काल में भी समता रख , ब्रह्मलीन हो जाता ।

मुक्त हुआ जीवन बन्धन से ,वही मोक्ष है पाता ।। १४


प्रथम श्रवण ,फिर मनन करो हे, सांख्य ज्ञान के खातिर ।

आत्म ज्ञान पा , लिप्त न हो मन , जगत मोह के खतिर ।।

यही दशा जीवित मुक्ति की ,जीवित ही पा जाना ।

कर्म सभी जग का करना हे , प्रभु संग प्रीति निभाना ।। 15



हुआ समाप्त द्वितय अध्याय ।

प्रभुवर हरदम रहे सहाय ।।

गुरुवर हरदम रहे सहाय ।।।

SREE GEETA YOG PRAKASH श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 3

SREE GEETA YOG PRAKASH 

  श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 3

कर्म - योग 


कर्म बिना नर कभी न रहता, नर का बही स्वभाव ।
राग - व्देष संग में रहने से , सुख क सदा अभाव ।।

जो कर्तव्य मात्र करता है, लोभ लाभ को तजकर ।
उसका लाभ अनंत गुणा है, रक्षक प्रभु को मजकर ।।

बिना लोभ उपयुक्त कर्म से, सदा मोक्ष अधिकारी ।
यही कर्म है कर्म - योग, जिसकी महिमा अति भारी ।।
चंचल गति वाला मन भागे, तू मत जाय शरीर ।
धीरे - धीरे मन को साधो, प्रभु हरेगे पीर ।।

जो जग का सब कर्म तजोगे, पर हितार्थ सब कर्म ।
बिना कर्म बैठे रहना भी, है भारी दुष्कर्म ।।
जनक, कृष्ण, अवतार सभी, सब संतो को भी देखा ।
सबने कर्म निभाया अपना, रख आदर्श अनोखा ।।

कर्मेन्द्रिय से कर्म करे, संयमित रहे मन वशकर ।
क्या यह सुगम महा है, इस माया प्रपंच में फंसकर ।।
क्या यह सुख - साम्राज्य मिलेगा, बस मन को समझाये ।
नही नही यहाँ अगम राह है, सुगम सब गुरु पाये ।।

सतगुरु जी बतलाते है, इस मन घोड़े का खूंटा ।
कैसे संध्या ध्यान बने, जिस बिन जग का सुख रूठा ।।
बिना भेंट पाये सतगुरु से, रहे मांग अनबूझा ।
कहाँ शांति मिल पाई किसको, जो अनबूझे जूझा ।।

आत्मज्ञान का काम वहन का, कर्मयोग की सिध्दि।
क्या करिये अभ्यास अगर, अज्ञात रहे वह बुध्दि।।
करी त्रिकाल संध्या निज मन में, भक्ति ज्ञान पनपावे ।
आत्मज्ञान से ही मन वश हो, जो सतगुरु मिल पावे ।।

इसमें ही कल्याण जगत का, इसके बिन जग सूना ।
यह मारग जो छोड़ दिया तो, दुःख सब नित - नित दूना ।।
इसके बिन परमार्थ न जागे, स्वास्थ्य जग सुख खाये।
ताम - झाम सब कुछ छूंछा है, सब भीतर अकुलावे ।।

हुआ समाप्त तृतीय अध्याय ।
प्रभुवर हरदम रहे सहाय ।।
गुरुवर हरदम रहे सहाय ।।।

SREE GEETA YOG PRAKASH श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 4

SREE GEETA YOG PRAKASH
श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय - 4

अध्याय - 4
ज्ञान - कर्म - संन्यास योग 

ज्ञान कर्म संन्यास योंग का, वर्णन बहुत पुराना 
पहले प्रभु ने रवि को सुनाया, तनय मनु ने जाना ।।
इक्ष्वाकु थे तनय मनु के मनु ने उन्हें बताया 
इसी भांति राजश्री सभी और मुनियों ने भी पाया ।।

फिर से भगवन ने अर्जुन को, यही ज्ञान बतलाया 
हुआ प्रचार पुन: तन मन से, हम सबने भी पाया ।।
बार - बार के जन्म - मरण का, चक्र सदा चलता है 
पर कुछ याद नही रहता है, इससे यह खलता है ।।

SREE GEETA YOG PRAKASH श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 5

SREE GEETA YOG PRAKASH  

श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय - 5 

कर्म सन्यास योंग 

कर्मयोग, सन्यासयोंग, दोनों आपस में पूरक 
द्वेषहीन, इच्छाविहीन, सुख -  दुःख  में कमी न हो तो रत ।।
ऐसे ही सन्यासी जिनका अविरल कर्म स्वभाव 
अति गतिशील चक्र में लखता, स्थिरता का भाव ।।

परम लक्ष्य में तत्परता से, सदा निरत सन्यासी 
उसका कर्म अतुल्य महा है, कर्मयोग अभ्यासी ।।
जैसे रवि दिन -रात पथिक, पर कर्म न करते कोई 
उनका अति उपकार परम, परमार्थ न जग में गोई ।।