श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 1
SREE GEETA YOG PRAKASH
गीता
प्रथम अध्याय
अर्जुन विषाद योग
बहुत दिनो की बात हुई यह बात है अमर कहानी ।
पांच हजार बरस बीते है, फिर भी नहीं पुरानी ।।
लिया जन्म भगवान कृष्ण ने , धन्य हुई यह धरनी ।
युद्ध किया कौरव पाण्डव ने , कथा विषय यह वरनी ।। 1
युद्ध भूमी में , पाण्डव दल में, अर्जुन के कोचवान ।
सारथि र्धम निभाया प्रभु ने, धन्य धन्य भगवान ।।
दुर्योधन थे कौरव दल में, महाबली गुणवान ।
वृद्ध पिता धृतराष्ट्र थे उनके, स्वामी सहज सुजान ।। 2
नहीं जा सके युद्ध भूमी में, नयन बिना लाचार ।
समाचार संजय से सुनते, और युद्ध संचार ।।
युद्ध हुआ होने के तत्पर, अर्जुन करे विचार ।
उभय पक्ष के बीच खडे़ हो, प्रभु से किया गोहार।। 3
देखूॅ तो है, कौन कौन परिचित भाई गुरु चाचा ।
कैसा युद्ध बना है अपना ,जस संजस ने बॅांचा।।
जब भगवान ने किया खड़ा रथ, बीच सैन्य दल लाकर ।।
बहुत विषाद हुआ अर्जुन को, अपने ही जन पाकर ।। 4
ममताग्रस्त दयार्द्र हुए, अर्जुन को, शोक महान ।
तब जो कुछ कहा प्रभु ने ,वह गीता का ज्ञान ।।
यह तो रहा विषाद योग, अर्जुन का प्रथम पुनीत ।
कृष्णार्जुन संवाद रुप में , है गीता का गीत ।। 5
हुआ समाप्त प्रथम अध्याय ।
प्रभुवर हरदम रहे सहाय ।।
गुरुवर हरदम रहे सहाय ।।।
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