श्री गीता योग प्रकाश

स्व. श्री बिजय शंकर पाण्डेय द्वारा रचित

गीता का पदानुवाद


श्री जी डी पाण्डेय द्वारा संकलित

प्रस्तुतकर्ता

पुनम पाण्डेय

SREE GEETA YOG PRAKASH श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 2

श्री गीता योग प्रकाश - अध्याय 2

SREE GEETA YOG PRAKASH 

अध्याय - 2 

सांख्य योग


युद्ध क्षेत्र में खडे़ हुये हो, यह तो समय विषम है ।

मोह कहॉं से आया अर्जुन, अपयशदायक मन है ।।

पण्डित ज्ञानी सम तव वाणी, मोह मन में लाओ ।

यह न शोका का समय ,करो कर्त्तव्य, वहीं बस ध्यावो।। 6


सब थे पहले ,फिर भी होंगे ,चलता चक पुराना ।

जो भी जन्म लिया मरता है ,नया ही बने पुराना ।।

इस तन में है आत्मा , अमर और अविनाशी।

बसन बदलना होता रहता , क्या मगहर क्या काशी ।। 7


जो है निश्चित , शोक न करना, सत्य सदा अविनाशी ।

धर्म युद्ध में युद्ध करो हे ,कीर्ति मिले अविनाशी ।।

मृत्यु -मिलन का शोक न करना , स्वर्ग मिलेगा तत्क्षण ।

कष्ट अगर इन्द्रिन को होगा , सहते जाना हर क्षण ।। 8


दुःख सुख में मन को सम रखना , हे मेरे वरवीर ।

ये तो नित्य नही रहते है, मत आतुर हो धीर ।।

समता में रहने वाले को ,कभी न लगता पाप ।

सांख्य योग प्रारम्भ हुआ तो , नाश न हो परताप ।। 9


इसका पालन निशदिन करना, कर्म का बन्धन काटे ।

निर्भय सदा बना रहता है, सत्य के हाटे बाटे ।।

कर्म नहीं कोई बल रखता, इस समता के आगे ।।

निश्चल मन जब हो समाधि में , स्थितप्रज्ञता जागे ।। 10


स्थितप्रज्ञ के क्या लक्षण है ,हे प्रभुवर बतलाये।

काम-रहित,निज आत्म पथिक, अति तुष्ट प्रभु बतलाये ।।

जो सुख दुःख में समचित रहता , मन विकार नहिं जागे ।

जो परहित में आगे रहता, अरु प्रपन्च से भागे ।। 11


आसक्ति हो विषय के चिन्तन , आसक्ति से काम ।

काम क्रोध की जननी बनता , मूर्खता परिणाम ।।

मूढ़ बने तो चेत भी भागे , ज्ञान का होवे नाश।

मृतक समान बने नर उस क्षण, ज्ञान का हो जब नाश ।। 12


ज्ञान नहीं तो भक्ति भी भागे , भागे तुरत विवके ।

भक्ति बिना नहिं शांति मिले , यह परम सलोना टेक ।।

शांति बिना सुख सपनेहु दुष्तर, बोले सन्त अनेक ।

योगी जागे , जब जग सोवे , यही एक पथ नेक ।। 13


ब्राह्मी-दशा प्राप्त नर ऐसा , परम शांति को पाता ।

पाकर परम प्रभु पथ पावन ,मोह मार्ग नहिं जाता ।।

अन्त काल में भी समता रख , ब्रह्मलीन हो जाता ।

मुक्त हुआ जीवन बन्धन से ,वही मोक्ष है पाता ।। १४


प्रथम श्रवण ,फिर मनन करो हे, सांख्य ज्ञान के खातिर ।

आत्म ज्ञान पा , लिप्त न हो मन , जगत मोह के खतिर ।।

यही दशा जीवित मुक्ति की ,जीवित ही पा जाना ।

कर्म सभी जग का करना हे , प्रभु संग प्रीति निभाना ।। 15



हुआ समाप्त द्वितय अध्याय ।

प्रभुवर हरदम रहे सहाय ।।

गुरुवर हरदम रहे सहाय ।।।



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